पृष्ठ:अपलक.pdf/११०

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तिमिर-भार जग की छाती पर तिमिर-भार; सब ओर भर रहा अन्धकार; जग की छाती पर तिमिर-भार। कज्जल का वर्धमान भूधर, उभरा नभ पर, उतरा भू पर, आक्रान्त-सृजन के कण-कण हैं। फैला है यह नीचे ऊपर; यह तम है ? या हिय-अंहकार ? जगं की छाती पर तिमिर-भार । २ आ रहा आज यह मुंह खोले, सब निगल रहा है बिन बोले; अम्वर निगला, अवनी निगली; यह निगल चुका जन-मन भोले; सब कहीं इसी का है प्रसार; जग की छाती पर तिमिर-मार । ३ है इसका सृष्टा कौन, अरे ? है किस दिशि उसका भौन, अरे छियानवे