पृष्ठ:अपलक.pdf/१११

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अपलक वह कौन ? जो हमें देकर तम हमसे रहता है परे-परे ? तम भी क्या है उसका विकार ? सब दिशि क्यों छाया अन्धकार ? ४ है किसकी यह काली चादर ? है कौन छिपा इसके भीतर ? जो इसके अवगुण्ठन में हैं, वह है क्या चिर सत-चित-सुदर ? यदि है। तब क्यों यह अनाचार ? क्यों जग के हिय पर तिमिर-भार? ५ हमको कुछ-कुछ है ज्योति स्मरण ! हैं इसीलिये तो अडिग चरण !! पर, पूछ रहा है हृद्य आज- स्मृति से कैसे हो तिमिर-हरण ?? हिय-धैर्य रहा है आज हार ! जग की छाती पर तिमिर-भार !! ६ पर, हम क्यों छोड़े धैर्य आज ? क्यो डिगे हृदय का स्थैर्य आज ? निज में आमंत्रित क्यों न करें हम, रवि-मण्डल, तारक-समाज ? आओ, कर दें तम क्षार-क्षार ! मिट जाए जग का अन्धकार !! केन्द्रीय कारागार, बरेली दिनाङ्क २४ नवम्बर, १९४३ } सत्तानवे