पृष्ठ:अपलक.pdf/११२

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अस्तित्व-नाव प्रियतम, जीवन-नद में मेरी अस्तित्व-नाव, दोलित है, वाहित है, इसका रंच न टिकाव ! कैपित अस्तित्व नाव ! अपनी इस एकाकी; नौबन्धन-कील' रहित, यह जर्जर दारु-खण्ड, जिसको नौका कह मै थामे हूँ नाव-दण्ड, तिस पर, अब चल निकला विकट प्रभंजन प्रचण्ड, इस क्षण, क्यों हो न शिथिल मम नौ-सन्तरण-चाव ? जर्जर अस्तित्व-नाव। २ नौका में मैं ही हूँ मेरे हाथों में हैं क्षेपणियाँ २ दुविधा की ! जीर्ण शीर्ण वात-वसन', दुर्गति है नौका की; ऐसी तरणी का हो क्यों न निम्न-दिशि बहाय ! वाहित अस्तित्व-नाव। १ नौ बन्धन कील = लंगर, लांगल २ खेपणियाँ -डाँड, नाव खेने के डरले ३ वात वसन = पाल, जिसमें हवा भर जाने पर नाव गतिवती होती है। अठानवे