पृष्ठ:अपलक.pdf/१२

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भ कुत्सित नीचता, घोर राक्षसीपन, नग्न बर्बरता, पाशविक रक्त-लिप्सा, जघन्यतम स्वार्थपरता, घृणित अवसरवादिता एवं हिजड़ेपन से भरी कायरता का परिचय देकर पहले फाशीस्त शक्ति से और तदनन्तर साम्राज्यवाद से, पेट के बल रेंगकर, दाँत निपोरकर, समझौता किया। जिनके दर्शन-शास्त्र में समझौता करने का इतना बड़ा अध्याय है, वे यदि बुद्ध-दर्शन तथा गांधीवाद को मामन्तशाही से समझौता करने वाला बतायं तो उनकी इस मिथ्यावादिता पर हमें रंच-मात्र भी आश्चर्य नहीं होता। हाँ, अवश्य ही उनकी दृष्टि में गांधी-बुद्ध-मार्ग समझौता सिखाते हैं। क्योकि ये दर्शन मानव को अारक्त नख-दन्तधारी, शोणितपायी भेड़िया बनने की प्रेरणा नहीं देते । ये दर्शन मानव को वास्तविक मानव बनाने की बात पर बल देते हैं। वर्गवादी भेड़ियो के असत्य दर्शन के सदृश गान्धी-बुद्ध के विचार रक्त की होली खेलने और विनाश की दावाग्नि प्रज्वलित करने का सन्देश नहीं देते। इसी कारण भारत की यह मानवी विचार-धारा उनकी दृष्टि मे समझौतावादी है। किन्तु, इन अस्थिरमति अालोचकों की दूषित विचार-शैली ने तो लेनिन के प्रिय कवि पुश्किन को भी पूँजीवादी कवि (बूर्वा पोएट) कह मारा था । इनकी माया अपरं- पार है। मेरे इतना लिखने का तात्पर्य यह है कि साहित्यालोचन में इस प्रकार की जो शैली चल पड़ी है वह साहित्य का यथार्थ मूल्याकन करने में नितान्त असमर्थ है। इतिहास की यथार्थवादिनी भाष्य-शैली और साहित्यालोचन की परिस्थिति-मूलक टीका-शैली एक सीमा तक हमारे ज्ञान को निखारती है। उनकी सीमाओं का ज्ञान दृष्टि के सन्निधान मे हो तब तो ठीक; अन्यथा 'वानर-कर करवाल' की उक्ति चरितार्थ हो जायगी। आज वही बात हो रही है। मानव के इतिहास को, मानव की संस्कृति को, मानव की अभिव्यक्ति को जब तक हम मानववाद की दृष्टि से नही देखेगे तब तक काम न चलेगा। यदि हम इनकी ओर वर्गवाद या पूँजीवाद या समाजवाद की दृष्टि से देखते चले गए तो हमें चित्र का विकृत रूप ही दिखाई देगा। इस प्रश्न पर रच यो विचार कीजिये । मान लीजिये कि समाज मे पूर्ण रूप से वर्गहीनता स्थापित हो गई। तब क्या उस वर्गहीन, समतामय, शोषण-शासन- रहित समाज का मानव, जहाँ तक उसके मनोरागों का सम्बन्ध है, अाज के मानव से बहुत भिन्न होगा ? क्या उस वर्गहीन जन के करुण, मैत्र, प्रेमल, वत्सले भाव आज के मानव के इन भावों से भिन्न प्रकार के हो जायं ? और यदि नहीं, तो उन भावों की अभिव्यक्ति क्या अाज की अभिव्यक्ति से बहुत भिन्न हो जायगी?