पृष्ठ:अपलक.pdf/१२१

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अपलक चख चमक भरो (आसावरी-ध्रुपद) मेरे प्रिय अलख-फलक, अपलक चख चमक भरो, मेरे अन्तर तर में लोचन-मग से उतरो; अपलक चख चमक भरो। १ दृग-मग को घेरे है गहन सघन अन्धकार; अम्बर के ऊपर है अमित निविड़ तिमिर-भार; ज्योति रहित तारा-पथ, भ्रान्ति भरित हिय-विचार; कोमल द्युति-कर से मम नयन अरुण-अरुण 'करो; अपलक चख चमक भरो। २ दामिनि-रेखा-सम तुम तुम चमको क्षितिजांगन में; मुसकाती ऊषा-से छात्रो मम आँगन में; कुसुमित कलिका-से, प्रिय, खिलो हृदय-प्रांगण में; आसावरी बने मम श्रवणों में बिहरो; अपलक चख चमक भरो। एक सौ सात