पृष्ठ:अपलक.pdf/१४

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ट मेरी तुकबन्दियो को एकत्रित करने और उन्हें क्रमबद्ध करने का प्रयास न करते तो मेरी कृतियों का प्रकाशन-क्रम सम्भव नही था। इसके और आगे भी मेरे जितने ग्रन्थ निकलेगे, उन सबका श्रेय प्रयागनारायण जी को ही है। मैं उनके प्रति कृतज्ञताज्ञापन कैसे करूंवे मेरे निकट के जन हैं। मुझ आलसी को उन्होने उबारा, इसके लिए मैं उन्हें बधाई अवश्य देता हूँ। ५, विड्सर प्लेस, नई दिल्ली बालकृष्ण शर्मा २० सितम्बर १११