पृष्ठ:अपलक.pdf/१५

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सूची बिन्दु सिन्धु छोड़ चली आज हुलसे प्राण ढरक-ढरक मत गिर, रे दृग-जल ज्वर झाँक रहा है ध्यान तुम्हारा धरा करें हैं इतिः श्री ४६३ वर्षान्त के दिन प्राणधन, मेरी कौन बिसात ? दान का प्रतिदान क्या, प्रिय ? मेरी प्राण-प्रिये ! तुमने कौन व्यथा न सही है ? ओ चिरन्तन ध्यान मेरे श्रान्त भिखारी कुहू की बात बस-बस अब न मथो यह जीवन समा गई मादकता मन में तुम बिन सूना होगा जीवन मग में मेरे चाँद स्वप्न मम बन आये साकार वरं देहि मेरी ग्रह सतत टेर कौन-सा यह राग जागा ? प्रियतम, तव तम-हर चरणों में सुन लो, प्रिय, मधुर गान