पृष्ठ:अपलक.pdf/१९

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आज हुलसे प्राण अाज हुलसे प्राण, पीतम, श्राज हुलसे प्राण; ओ निठुर, तुमने दिया यह नेह का बरदान ! हुलसे आज आकुल प्राण ? उन मृदुल प्रियतम चरण पर-- अश्रु भीने युग नयन धर,- हो गया कृत-कृत्य जीवन थामकर हिय आह क्षण भर; एक त्रुटि वह युग बनी, युग बन गया क्षण-मान; पीतम, आज हुलसे प्राण । २ सुघड़ साँचे में ढले हो, प्राण, तुम कितने भले हो! चिर निराश्रित विकल हिय को यो समाश्रय दे चले हो, सिहर उठ्ठा यह, पड़ा था जो निरा म्रियमाण: पीतम, श्राज हुलसे प्राण। तीन