पृष्ठ:अपलक.pdf/२१

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अपलक अब बने रहना सदा यों, हैं दिवस बीते सिसकते; दीन की कुटिया करेगी कौन सा सम्माम ? पीतम, आज हुलसे प्राण। ७ शाक्त मैं, तुम शक्ति मेरी, भक्त मैं, तुम भक्ति मेरी, नेह-योगी मैं, सजन, तुम--- प्रेममय अनुरक्ति मेरी; गीत-कर्ता मैं, बने तुम मम प्रफुल्चित गान; पीतम, आज हुलसे प्राण। ट गान मेरे, अनलमय विश्व-वित्मव-ध्यान मेरे, क्रान्तदशी मैं, सजन तुम,- क्रान्तिमय भगवान मेरे क्रान्तिमय, विश्रान्तिमय तुम शान्ति-मूल सुजान; पीतम, आज हुलसे प्राण; X X X X बाँध लो परिरम्भ-रसरी में,- सजन इस थकित जन को शिथिल बॉहों को बनाली-- ग्रीव-माला एक क्षण को,- पाँच