पृष्ठ:अपलक.pdf/२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अपलक एक क्षण बह-जो चुनौती दे युगान्तर के सृजन को, अवधिहीन अशेष में हो शेष का अवसान ! पीतम, आज हुलसे प्राण । श्री गणेश कुटीर, प्रताप, कानपुर मई १६३६