पृष्ठ:अपलक.pdf/२५

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अपजक ८ है कर्त्तव्य कठोर, और है जीवन-पथ भी चुर-धारा-सा; कर ले प्राप्त आज अपनापन, अब मत फिर मारा-मारा-सा, रे नर, तू बन जा नारायण, मत हो कातर, मत हो विहल !! मत ढरका तू अपना हग-जल! केन्द्रीय कारागार, बरेली दिनाङ्क जनवरी, १९४४