पृष्ठ:अपलक.pdf/३१

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अपलक जब जड़ता मय मरण विजित कर, ये चेतन के कण विखरे,- तब मैं क्यों न निहारू शोभा, अब इस अमर निशानी की ? आज इतिश्री हो जाने दो मेरी कसक-कहानी की । जिला जेल, उन्नाव, दिमाङ्क १० अप्रैल, १६४३ । पंद्रह