पृष्ठ:अपलक.pdf/३३

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अपलक अब तो अरुणाभा फैला दो, हरो तमिश्रा - माया, निज स्मयमान वदन - किरणों से तिमिर - निकन्दन कर दो, प्रियतम, आज यही बस वर दो। जब तुम विहँसोगे, बलि जाऊँ, मम रस छलक उठेगा। बिन्दु-बिन्दु में बिम्ब तुम्हारा बरबस मलक उठेगा !! किन्तु, कहो, दिक-काल-आवरण यह कब तलक उठेगा ? बहुत हुआ, इतना वय बीता, अब कुछ तो उत्तर दो ! प्रियतम, अब अन्तर तर भर दो। केन्द्रीय कारागार, बरेली, दिनाङ्क ८ दिसम्बर, १९४३ सत्रह