पृष्ठ:अपलक.pdf/३४

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प्रारणधन, मेरी कौन बिसात ? मेरी कौन बिसात, पागधन, मेरी कौन बिसात ? जिसको चाहो, उसे निबाहो, मन पाए की बात; प्रागधन, मेरी कौन बिसात ? १ सभी सद्य रस चाहते, सभी नवल के मीत; क्यों सुध लो तुम जब गए मेरे वे दिन बीत ? आज, जब शिथिल हो चले गात, प्राण, अब, मेरी कौन बिसात ? २ अमर उड़ चले डाल से, जब कुम्हलाए फूल, मुझे मुरझता लख हुए तुम भी तो प्रतिकूल झटककर छुड़ा चले तुम हाथ, प्राण, अब, मेरी कौन बिसात ? ३ क्या मैं पथ के गुल्म का कुछ ऐसा हूँ शूल ? जो मुझसे तुम खींचते अपना विमल दुकूल ? कहो तो यह कैसा आघात ? किन्तु अब मेरी कौन बिसात ? अठारह