पृष्ठ:अपलक.pdf/४०

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तुमने कौन व्यथा न सही है ? मेरे कारण, प्रियतम, तुमने कौन व्यथा है, जो न सही है । ऐसी कौन वेदना है जो हठ कर तुमसे दूर रही है ? १ देकर मुझे नेह निज तुमने विपदाएँ आमन्त्रित पर लीं, तुमने निज सुकुमार हृदय में यों ज्वलन्त ज्वालाएँ भर ली। बुझी न वे रंजित बालाएँ, जदपि अमित हग धारे ढर ली, हा जीवन, तव चिता-वह्नि बन उमड़ी जो, वह ज्वाल वही है ! मेरे कारण, प्रियतम, तुमने कौन व्यथा है ओ न सही है ? हे मेरे तुम अमल पागधन, अहो असह्य तितिक्षा-साधक, अग के निन्दक जन न बन सके तव नव-नेह पन्थ के बाधक ! तुम मेरे श्राराध्य बने? मैं बना तुम्हारा लघु आराधक, हे मेरे अप्रतिम, तुम्हारी प्रतिमा जग में श्राज नहीं है। मेरे कारण, प्रियतम, तुमने कौन व्यथा है जो न सही है ? ३ सैचित सरस पुण्य-फल सम तुम मम जीवन में श्रान पधारे, फिर वैरागी सम तम सहसा तज यह अपना गेह सिधारे; खौबीस