पृष्ठ:अपलक.pdf/४१

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अपलक जितने दिन तुम रहे, सहे नित उतने दिन ये संकट सारे, "कठिन नेह को मारग--" जग के अनुभव ने सच बात कही है ! तुमने मेरे कारण, प्रियतम, कौन व्यथा है जो न सही है ? ४ जो, जीवन-प्रसून अञ्जलि में लेकर चले निवेदित करने, और, चले जो तुम सम प्रिय की प्रतिमा मन-मन्दिर में धरने, उनके मग में फूल खिले कब ? उन्हें कब मिले शीतल झरने ? उनके जीवन-मारग में तो नित प्रतिकूल बयार बही है। तुमने मेरे कारण, प्रियतम, कौन व्यथा है जो न सही है? श्री गणेश कुटीर, कानपुर, दिनाङ्क २-६-४७ पच्चीस