पृष्ठ:अपलक.pdf/४२

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ओ चिरन्तन ध्यान मेरे अब कहाँ पाऊँ तुम्हें मैं, कुछ कहो तो प्राण मेरे ? किस सघन पट में दुरे हो, ओ चिरन्तन ध्यान मेरे ? कुछ कहो तो प्राय मेरे ? १ जानते हो क्या कि कितना शून्य है अस्तित्व तुम बिन ? जानते हो क्या कि कैसे बीतते हैं शून्य ये छिन ? आह के हिण्डोल में हैं भूलते तव स्मरण निशि-दिन अकथनीया है बिथा मम, श्रो स्मरण-अभिमान मेरे ! ओ चिरन्तन ध्यान मेरे ! २ हो कहाँ ? अथवा हुए हो विश्व से ही तुम तिरोहित ? नित्यता है क्या मनुज की भावना अज्ञान-मोहित ? कर सकी है क्षार तुमको क्या चिता की ज्वाल लोहित ? हाय ! तो, तड़पा रही है वेदना क्यों प्राण मेरे ? श्रो स्मरण अभिमान मेरे ! ३ मान लू कैसे कि उतना वह समर्पण था क्षणिक ही ? मान ल कैसे कि है यह काल बस वंचक वणिक ही ? छब्बीस