पृष्ठ:अपलक.pdf/४५

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प्रपलक 8 गत जीवन पर डाल रहे हैं, अपनी थकित दृष्टि बिन काज, क्या से क्या हो जाते यदि हम यू' से यू' चलते अनजान, अब तो बहुत थक गये प्राण । ५ गत कृत अभ्यासों के बन्धन हुए बहुत ही सुदृढ़, बलिष्ठ, पीतम, कठिन दीख पड़ता है इस गति से पाना निर्वाण, अब तो बहुत थक गये प्राण । ६ खेल-खेल में तुम मनमौजी, यदि हमको दो झटका एक, तो बस, उस इक टल्ले से ही हो आये जीवन कल्याण, अब तो बहुत गये प्राण। उनतीस