पृष्ठ:अपलक.pdf/४७

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अपलक ४ पीतम, श्याम, नयन धन, बिछुड़न के दिन से हिय मचल गया है, तुम्हीं कहो, क्या जतन करू? यह हृदय सदा का है अविचारी, प्रिय, मेरा हिय सतत भिखारी । इकतीस