पृष्ठ:अपलक.pdf/४९

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अपलक श्रोप्रकाश-विकास, नव-नव रश्मि-हास-विलास-रंजित, मत चमकना अब,निराश्रित हूँ शिथिल-से गात हैं अब, फिर अँधेरी रात है अब । श्री गोश कुटीर, प्रताप, कानपुर दनाक मई १९३६ तेतील