पृष्ठ:अपलक.pdf/५२

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समा गई मादकता मन में ! समा गई मादकता मन में, इस रीते अस्तिस्त्र-कुम्भ से उफन उठे नव-नव रस क्षण में, समा गई मादकता मन में। जिस दिन सधन नील अम्बर में, सन्ध्या के एकान्त प्रहर में, गामी दिनकर ने भेजी निज किरणें रंग भरने, पड़े उसी दिन रा-बिरङ्ग डोरे मेरे विनत नयन में; समा गई मादकता मन में। २ जब मैंने दिङमण्डल देखा, देखी सतरङ्गी रेखा, वायुयान चढ़े मेघगरा देखे आते-जाते जिस उस दिन से ही मदिर मधुरता दीख पड़ी रज के कण-कण में; समा गई मादकता मन में । छत्तीस पर