पृष्ठ:अपलक.pdf/५४

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तुम बिन सूना होगा जीवन चलोगे उन्मन, तुम बिन सूना होगा जीवन, प्रियतम ! ऐसे बोल न बोलो, कि तुम बिन सूना होगा जीवन । १ कई युगों से सन्तत, विचलित, मेरा नशाकाश,- दिशा-शून्य, उड्डु-रहित, तमोमय, घृणित, व्यथित, निराश, सहसा तव बालारुण श्रीमुख, पाकर है कृत-कृत्य, खोई-सी सब दिग्बालाएं आज कर रहीं नृत्य, आनन्दित है निखिल वनश्री, हुल से मेरे कण-कए, असमय क्यों प्रयाण का चिन्तन ? २ प्राची को पश्चिम करने क्यों यह मन में ठानी? ऊषा को सन्ध्या करने की यह कैसी मन-मानी ? उदयाचल अस्ताचल में मन परिवर्तित कर बालो, कुछ क्षण तो मेरे सुहाग का कुकुम तनिक सँभालो ! बड़ी कठिनता से पार हैं प्रिय ! तब दुर्लभ दर्शन, तुम बिन सूना होगा जीवन । अड़तीस