पृष्ठ:अपलक.pdf/५६

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मग में १ हम चले जा रहे हैं मग में, अपने सर पर इक भार लिये, अरमानों का अम्बार लिये, हम ग्रीव मुकाये चलते हैं हग में मूरत साकार लिये; कम्पित पग धरते जाते हैं, इस उबड़-खाबड़ मारग में, हम चले जा रहे हैं मग में। २ है सरमाया कुछ पास नहीं, आश्रय की कोई आस नहीं, सर पर है साया पासमान, यो साधन का आभास नहीं; हम शिथिल-चरण, हम विरथ पथिक, हम श्रा पहुंचे हैं इस जग में ; हम चले जा रहे हैं मग में। ३ है नहीं कारवाँ साथ यहाँ, फिर कौन बँटावे हाथ यहाँ ? चालीस