पृष्ठ:अपलक.pdf/६

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ग जाता है। पर कुछ काल तक तो वही सिद्धान्न ध्रुव सत्य के रूप में प्रतिष्टित किया जाता है । मानव-कर्म-प्रेरणाओं और मानव के तात्विक विचारो के सम्बन्ध मे यही क्रम दिखलाई देता है। एक समय था जब बहुत उच्च स्वर से इस बात का प्रतिपादन किया जाता था कि सुख की लालसा से मानव के कर्म प्रेरित होते हैं। और सुख भी ऐसा जिसका रूप आधिभौतिकतामय था। आधिभौतिक सुखवादी तत्ववेता ( Hedonist Philosophers ) मानव-कर्म की समस्त प्रेरणास्रो को मानव की सुख-लालसा में निहित पाते थे । ऊँचे-से ऊँचा वैयक्तिक एवं सामाजिक बलिदान, कष्ट सहन एवं समर्पण मानव की सुख-इच्छा द्वारा प्रेरित माना जाता था। किन्तु श्राज वह श्रवस्था नहीं रही। ज्यो-ज्यो विचारो मे परिपक्वता अाती गई त्यों-त्यो आधिभौतिक सुखवाद के सिद्धान्त भ्रामक समझे जाने लगे। मानव की कर्म-प्रेरणा को उस सुख- वाद की परिधि में बाँधे रख सकना असम्भव हो गया । त्याग, अलख की टोह, बहुजन-मुक्ति-भावना, सेवा आदि के विचार तो मानव-कर्म को प्रेरित करते हैं न ? तब केवल सुख-इच्छा को कर्म की मूल प्रेरणा कैसे मान लिया जाय ? तात्पर्य यह कि वह सुखवादी विचार-धारा भ्रान्त समझी गई। इसके उपरान्त, मानव-कर्म के शुभाशुभ स्वरूप-निर्णय के सम्बन्ध में श्राधिभौतिक सुखवाद के पुत्र उपयोगितावाद की तूती बोली । पर, सदाचार-शास्त्र के इस सिद्धान्त में भी मानव के प्रौढ़ विचार ने न्यूनता का अनुभव किया। मैं उस न्यूनता का विशद ऊहापोह नही करूँगा। इतना ही जान लेना अलम् है कि उपयोगितावादके 'अत्यधिक जन-समूह के अत्यधिक कल्याण (Greatest good of the greatest number ) वाले सिद्धान्त में श्राचार-विषयक ऐसी त्रुटियाँ दृष्टिगत हुई जिनके कारण उस सिद्धान्त को भी सर्वमान्यता नहीं दी जा सकी । साधन और साध्य के झमेले उठ खड़े हुए। इस बात की ओर संकेत करने का अर्थ इतना ही है कि एक समय जो सिद्धान्त सर्वमान्य हो रहा था वह अधूरा जेंचा और मानव-विचार ने उसे पूर्ण सत्य के रूप में ग्रहण नहीं किया । कुछ काल तक इस सिद्धान्त की भी धूम रही कि मानव-कर्म केवल यौन-भावना से प्रेरित होते हैं। कला, कौशल, साहित्य, जन-सेवा, सबकी प्रेरणा यौन-भावना से निःसृत समझी गई । सुकरात का विषपान, सिद्धार्थ का गृह-त्याग, ईसू खीस्ट का सूली चढ़ना-सबके पीछे योनि-आकर्षण रहा-इस प्रकार की उपहासास्पद बात कहने वाले भी हुए, और कदाचित् है। श्राज मानव-विचार इस फ्रायडीय जायावाद की सीमाओं को समझ चुका है और उसके खोखलेपन को भी देख चुका है t