पृष्ठ:अपलक.pdf/६०

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स्वप्न मम बन आये साकार स्वप्न मम बन आये साकार, इतने बरसों के चिन्तन से प्रकटे पिय, हिय-हार, स्वप्न मम बन आये साकार। १ जो मम जीवन के मृदु सपने, खूब हुए तुम मेरे अपने, मन के कल्पित चित्र, आन तुम बोल उठे इस बार ! स्वप्न मम बन आये साकार। २ सपने की सब दुनिया मेरी, मूतिमती हो गई घनेरी, बहुत दिनों में मिट पाई है, स्वप्न-जागरण-रार; स्वप्न मम बन आये साकार। अब न मुझे पावस का डर प्रिय, अब क्यों काँपेगा निशि में हिय ? चचालीस