पृष्ठ:अपलक.pdf/६६

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कौन सा यह राग जागा ? कौन सी यह प्रीति जागी ? कौन सा यह राग जागा ? कौन से ये स्मरण जागे? कौन उलटा भाग जागा ? ? कौन कहता है कि बाहर से लहरते आ गये स्वर ? करुण मेरे गीत ही हैं भर रहे पाताल अम्बर; पर मुझे ये लग रहे हैं अपरिचित-से किन्तु, मनहर, हाय, अपनों को पराया कर रहा हूँ मैं अभागा; कौन सा यह राग जागा? २ हलचलों के बीच भी वाणी रही मेरी अकम्पित- और विप्लव भी न कर पाए सुघड़ मम गीत खण्डित- साध थी यह, किन्तु देखा कण्ठ है आक्रोश-मण्डित; और मैं बस रो रहा हूँ हिचकियों के राग गा-गा; कौन उलटा भाग जागा? श्री गणेश कुटीर, प्रताप, कानपुर, दिनाङ्क २७-३६ पचास