पृष्ठ:अपलक.pdf/६७

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प्रियतम, तव तम-हर चरणों में प्रियतम, तब तम-हर चरणों में- जीवन-सलिल ढरे, तब भय क्या, शत मरणावरणों में ? प्रियतम, तव तम-हर चरणों में। ? संशय के, श्राशंकाओं के अनगिनती दल बादल- फैला चुके स्मरण-अम्बर में अन्धकार का काजल लहराई दिग्भ्रान्ति तिमिरजा स्रोतस्विनी कराली, होने चली विपथगा हिय की भक्ति अनन्य मराली; आया अनिल, भर गया कम्पन तट के हरित तृणों में; विचलित हम नत तव चरणों में। २ तिमिर पूर्ण अस्तित्व-निशा लख क्यों उलझे सम्भ्रम में ? जब तव पद-नख किरणें सन्तत विहर रही हैं तम में ! यदि न सूक्ष्म दर्शन सम्भव हो, यदि लोचन थक हारें, तब भी क्यों न ज्योति-दर्शन हित हम निज जीवन वारें ? यामा निखरेगी न कभी क्या उषः काल क्षणों में ? प्रिय तम, तव तम-हर चरणों में । इक्यावन