पृष्ठ:अपलक.pdf/६९

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सुन लो, प्रिय, मधुर गान हुए बहुत दिन अब तो सुन लो, प्रिय, मधुर गान, आत्म-निवेदन हित हैं आकुल मम निरत प्राण । ? नेह मरित मेघ सहश मँडराता अभिव्यञ्जन, सघन वारि-धारा सम स्वर सिहरे मन-रञ्जन, दामिनी दिवानी-सी रागिणी छिड़ी क्षण-क्षण, पावस का स्नान करो इस निदाघ में, सुजान, सुन लो, प्रिय, मधुर गान । २ मेरे क्या स्वर, पीतम, मेरे क्या सजल गीत ? इसी तरह जगा लिया करता हूँ स्मृति अतीत; दीर्घ मौन-आश्रय ने किया मुझे भीति-भीत; इसीलिए आज छेड़ बैठा हूँ सुरत-तान; सुन लो, ग्रिय, मधुर गान। ३ स्वर क्या है ? क्या 'केवल भौतिकता का प्रसार ? क्या केवल श्रवणागत वायु का तरङ्ग-भार ? तिरफ्न