पृष्ठ:अपलक.pdf/७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ध्वनि, लय, स्वर, शब्दों का यह निर्णय है असार ! मैरी स्वर लहरी है प्राणों की इक उड़ान सुन लो, प्रिय, मधुर गान । ४ हृदय-सिन्धु मन्थन का घोष गान है मेरा, खर-समूह पीतम का मुखर ध्यान है मेरा; नव मम ध्वनि-ज्ञान, नवल आसमान है मेरा, अपना है अलग विश्व; है अपना नव-विधान, सुन लो, प्रिय, मधुर गान । ५ कौन गीत गाऊँ मैं ? कहिये, सरकार, जरा ? हँसकर हरिये तो मम गहन मौन-भार ज़रा गुनगुनाइए अश्रुत स्वरित राग प्यार भरा, मूक गीत-गायक यह तान-दान सुनिये, प्रिय, मधुर गान। ६ कब से आ बैठे हो, बोलो तो, हृदय बीच ? कब से तुम खेल रहे मेरे ग मीच-मींच ? भागो हो जब-जब मैं लाता हूँ तुम्हें खींच, ऐसा क्या खेल, अजी, यह भी क्या खूब मान ? सुन लो, प्रिय, मधुर गान। माँग रहा सिहर, सिहर उठता है स्पर्श-स्मृति से शरीर; रोम-रोम मेरे, प्रिय, उठते हैं अधीर; चौवन