पृष्ठ:अपलक.pdf/७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सायुज्य याञ्चा सम्मान, मुझमें धुलो आन, तुम हे, मृदुल प्राण मम याचना का करो रंच मुझमें घुलो श्रान। १ श्राई कहाँ से स्वनित बेणु की टेर, संश्लथ हुए गात्र, लोचन रहे हेर, बाँधा तुम्हारे स्वरों ने मुझे घेर, तुम हो कहाँ ? शीघ्र आओ, हुई देर, सन्ध्या हुई, हो चला पन्थ सुनसान, मुझमें घुलो आन, तुम हे, मृदुल प्राण । २ तुमको बुलाया, मुला योग श्री क्षेम, पर क्या नहीं निभ सका नेह का नेम? कैसे तुम्हें मैं पुकारू कहो, प्रेम, जिससे इधर तुम दुलो आज बे टेम ? अति काल आया, हुआ पूर्ण दिन-मान; अब तो घुलो मान, तुम हे, मृदुल प्राण । अट्ठावन