पृष्ठ:अपलक.pdf/८१

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तेरा मेरा नाता क्या है तेरा मेरा नाता क्या है ? यह, मैं जग को क्या समझाऊँ ? खिसिर-खिसिर हँसने वालों को मैं क्यों हृदय-मर्म बतलाऊँ ? १ कितने हैं जो मानव-हिय का द्वन्द्व समझ सकते हैं, प्रियतम ? कितने हैं जो सह-अनुभव की व्यथा हिये रखते हैं, प्रियतम ? इस छिद्रान्चेपण-रत जग में सभी छिद्र लखते हैं। प्रियतम ! यह लीला लख-लख मन ही मन क्यों न निरंतर मैं मुसकाऊँ ? तेरा-मेरा नाता क्या है ? यह मैं जग को क्या समझाऊँ ? २ जग से मैं क्या कहूँ कि तू है मेरा जीवन-सन्ध्या-तारा! मेरे सूने मन-अम्बर का तू ही तो है एक सहारा !! औचित्यानौचित्य-व्याधि से ग्रस्त हुआ है जग बेचारा, जग को अपनी-सी कहने दे ! मैं अपनी-सी करता जाऊँ !! तेरा-मेरा नाता क्या है, यह मैं जग को क्या समझाऊँ ? ३ ढीठ समझता है तू मुझको ? तो ऐसा ही समझ, हठीले; मैने तो अपनी छाती पर लिये जगत के बाण नुकीले; छियासठ