पृष्ठ:अपलक.pdf/८५

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सखे ! ? गाते रहे जनम भर तुम तो निपट निराशा गीत, ससे, क्या आए थे निपट पराजय तुम अपने मन चीत, सखे ? रोते और रुलाते तुमने काटा अपने जीवन को, हार लगाए रहे गले से तुमने त्यागी जीत, सखे । २ साख गँवाई, खोई तुमने अपनी सब परतीत, सखे, आँसू की लड़ियों-लड़ियों में जीवन हुआ व्यतीत, सखे, तुम्हें कौन पतियाएगा अब, जब तुम हुए निराशी-से ? यौवन एक कहानी है अब वह अब बना अतीत, सखे। ३ किस पत्थर पर समुद चढ़ाया तुमने हिय-नवनीत, सखे ? किसके सम्मुख हुए,अहो,तुम, जाकर प्रणत, विनीत, सखे? सोचो रच कहीं पत्थर भी रस-वश पिघला करते हैं ? अरे, उपल-मूर्तियाँ हुई हैं, कहो, कभी परिणीत, सखे ? सत्तर