पृष्ठ:अपलक.pdf/८६

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अएलक ४ लहराए अब स्मरणानन में क्यों कोई पटपीत, सखे ? अरे याद ही क्यों रह जाए ? जब कि गए दिन बीत, सखे ? हृदय बने क्यों आज अखाड़ा, आशा और निराशा का ? इसके पार क्यों न तुम जाओ, हो निःशङ्क, अभीत, सखे ? जिला जेल, उन्नाव, दिनाङ्क ५ अप्रैल १६४३ इकहत्तर