पृष्ठ:अपलक.pdf/८७

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हम हैं मस्त फ़कीर १ हमसे दूर रहो री संतत, हम हैं मस्त फ़कीर ! बाघबर से कहो क्यों बँधे चीनांशुक का चीर ! सखी री, हम हैं मस्त फ़कीर । २ हमें मिला है सतत अटन का यह प्रसाद-अभिशाप; गृही लोग, हम अनिकेतन की क्या जाने सुख-पीर ? सखी री, हम हैं मस्त फकीर! ३ हम क्या जानें हग-अंजन की पतली-पतली रेख? हम तो जान सके हैं केवल मग की "न-इति-'लकीर । सखी री, हम हैं मस्त फकीर। ४ हमें मिले हैं पथ में जब-तब कुछ लोचन स्मयमान, जो हम से सैनों में बोले : दिखलाओ हिय चीर ! किन्तु हम ठहरे मस्त फ़कीर !