पृष्ठ:अपलक.pdf/९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

च यार लोग, अपने अधकचरे तर्क का श्राश्रय लेकर कह सकते हैं, लो, यहाँ शेली पलायनवादी हो गया है। कवि केवल वसंतागम की अाशा लिये बैटा है । अरे, वसन्त को लाने के लिए वह प्रयत्न-सन्देश क्यों नहीं देता ? मानवता ठिठुर रही है। उसका रक्त जम गया है ! पूँजीवादी शीत का राक्षस उसे निगले जा रहा है । और एक कवि शेली है जो जन-गण को, इस शीत के राक्षस को परास्त करने का संदेश न देकर केवल भाग्यवाद की-बसन्त के श्रागमन की अपरिहार्यता की बात कहता है और इस प्रकार जनता को पूजीवाटी शोषण का शिकार बने रहने पर विवश करता है। उसने यह भाग्यवादी अहिफेन वितरित किया है ताकि जनसमूह हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें और पूंजीपतियों द्वारा शोषित-चोशित होते जायं । ठीक ही तो है। अन्ततः शेली उन्नीसवीं शती के शोषणवादी समृद्ध पूँजीकाल की उपज जो ठहरा । वह तो अपने बर्ग को जन-गण के क्रोधानल से बचाने के लिए ऐसी बात कहता ही । शीतकाल का त्रास सहते जायो, भाई, क्या करें ? हाँ वसन्त श्रायगा, उस का आगमन निकट ही है । पर, अब तक नही श्राता तब तक तो विवशता है ही। वाह शेली, बड़े घुटे हुए हो। वसन्तागम का आश्वासन देकर, शीत का पास सहते जाने की बात तुमने वैसी ही कही जैसी कि पादरी लोग सामन्त-पूंजीवाद की रक्षा के लिए जन-समूह को स्वर्ग-प्राप्ति की बात सुनाते रहते हैं। इसी प्रकार लोगो को अफीमची बनाया जाता है। यदि प्रगति-उपासक इस प्रकार का तर्क करे तो वह वितण्डाबाद के अति- रिक्त और कुछ न होगा। यह तो शेली का सौभाग्य है कि पश्चिमी झंझानिल के प्रति अाह्वान-गीत' नामक इस कविता में उसने झंझानिल से प्रार्थना की है कि हे कोप-ज्वलित भैरवी, तू मेरे प्राणों में समा जा, तू मम-मय हो जा। हे चण्डिके, मेरे मृत विचारों को, सूखे-सिकुड़े पत्तों के सदृश उड़ा ले जा ताकि अभिनव- जन्म-क्रिया शीघ्र गतिमती हो जाय ! सारांश यह कि यदि शेली की वसन्तागम बाली पंक्तियों को इस प्रकार के आलोचना-दण्ड से पीटने लगें तो हम उसका पलेथन निकाल सकते हैं । पर, वह सत् समालोचना नहीं होगी। विज्ञानबाट के नाम पर आज हमारे साहित्य में जो धमाचौकड़ी मच रही है, प्रगतिवाद के नाम पर जो व्यक्ति-समष्टि-सिद्धान्त प्रसारित किये जा रहे हैं, सामन्त-साम्राज्य-शोषण-वर्ग-विरोध के नाम पर जो चकर-डण्ड पेले जा रहे है वे वास्तव में इतने अवैज्ञानिक हैं कि जिसकी सीमा नहीं। विज्ञान के नाम से जो लोग इस प्रकार का विवेचन करते हैं वे वास्तव में कोई ऐसी बात नहीं कहते हैं जिस पर उन्होंने स्वयं स्वतन्त्र विचार किया हो । कुछ विचारों का बमन-मात्र ही उनका विज्ञान (१) सम्मत प्रगतिवाद है। कई बार यह कहा गया है कि वर्तमान हिन्दी-