पृष्ठ:अपलक.pdf/९७

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मेरे भौन लगी आग माई, मेरे भौन लगी अति ही प्रचण्ड प्राग, मोते कहि रह्यौ कोउ : बावरी, री, जाग-जाग । १ अलसानी मैं नितान्त, पाँव तान सोय रही, मैं तो घर-बार निज आँख मूं दि खोय रही; आपुनपौ बार होत, मैं सालस जोय रही; अनहूँ ना जाग्यौ मेरी हिय-निद्रा को विराग; मोते कहि रह्यो कोउ, बावरी, री, जाग-जाग । २ घधक्यौ है काम-राग, धधक्यौ है क्रोधानल, धधकि द्वष-दम्भ-रार फूट्यौ ज्वालामुखी मेरो; धसक्यौ है धरातल ; मेरे घर खेलि रहे मेरे रिपु अमि-फाग ! माई, मेरे भौन लगी अतुल, प्रचण्ड आग ! पल-पल; बयासी