पृष्ठ:अपलक.pdf/९९

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आओ, प्रिय हृदय लगो अब मत बिलमो, प्रियतम, आ जाओ, हृदय लगो, दूर-दूर से ही तुम निज जन को अब न ठगो, आओ, प्रिय हृदय लगो! १ आओ मम मन-आँगन, मेटो यह अन्तराय, भेटो, दिक्-काल-जनित मेरी हिय-हाय हाय, तुम्हीं ढरो, मेरे तो शिथिल हुए सब उपाय; निज जन को अंगीकृत कर लो, अब मत विलगो; आओ, प्रिय हृदय लगो ! २ श्रोस-बिन्दु ने नभ से आकर चूमे शतदल, दूर देस के अलिगण उन पर झूमे पल-पल, और, एक तुम हो, जो मुझको भूले, चंचल, श्राए हैं शुभ क्षण अब, विरति रंग तुम न पगो; आओ, प्रिय हृदय लगो! चौरासी