पृष्ठ:अप्सरा.djvu/१५८

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अप्सरा साथ उसके मकान जायगी। पर इस भाव-परिवर्तन को देख वह कुछ घबरा गई थी। इसलिये उसी जगह खड़ी रही। गाड़ी चल दी. चंदन के कहने पर। (२३) राजकुमार ने अपने कमरे में पहुँचकर देखा, उसके संवाद-पत्र पड़े थे। कुलियों से सामान रखवा दिया। पारिश्रमिक दे दिया। उन्हीं पत्रों में खोजने लगा, उसके पत्र भी आए हैं या नहीं। उसकी सलाह के अनुसार उसके पत्र भी पोस्टमैन झरोखे से डाल जात थे। कई पत्र थे। अधिकांश मित्रों के। एक उसके घर का था। खोलकर पढ़ने लगा। उसकी माता ने लिखा था, गर्मियों की छुट्टी में तुम घर आनेवाले थे, पर नहीं आए, चित्त लगा है-आदि-आदि । अभी कॉलेज खुलने के बहुत दिन थे। राजकुमार बैठा सोच रहा था कि एक बार घर जाकर माता के दर्शन कर आवे। राजकुमार ने 'टी को पीछा करते हुए देखा था, और यह भी देखा था कि उसकी टैक्सी के रुकने के साथ हीटी की टैक्सी भी कुछ दूर पीछे रुक गई । पर वह स्वभाव का इतना लापरवाह था कि इसके बाद उस पर क्या विपत्ति होगी, इसकी उसने कल्पना भी नहीं की। जब एकाएक माता का ध्यान आया, वो स्मरण पाया कि चंदन की किताबे यहाँ हैं, और यदि तलाशी हुई, वो चंदन पर विपत्ति आ सकती है। वह विचारों को छोड़कर किताबें उलट-उलटकर देखने लगा। दराज से रबर और छुरी निकालकर जहाँ कहीं उसने चंदन का नाम लिखा हुआ देखा, घिसकर काटकर उड़ा दिया । इस पर भी किसी प्रकार की शंका हो, इस विचार से, बीच-बीच, ऊपर के सफों पर, अपना नाम लिख देता था। अधिकांश पुस्तकें चंदन के नाम की छाप से रिक्त थीं । कारण, उसे नाम लिखने की लत न थी । जहाँ कहीं था भी, वह भी बहुत सष्ट । और, इतनी मैली वे किताबें थीं, जिनमें यह छाप होती थी, कि देखकर यह अनुमान लगा लेना सहज होता था कि यह "परहस्ते, गता" की दशा है, और दूसरे लोग आक्रमण से स्वयं बचे रहने के