पृष्ठ:अप्सरा.djvu/२४

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अप्सरा

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असग _ 'प्रवृत्ति के वशीभूत होकर परचात् लोग अनर्थ करने लगते हैं । यही प्रत्याचार धार्मिक अनुष्ठानों में प्रत्यक्ष होरहा है। पर बृहत् अपनी महत्ता मे बृहत् ही है । बहाव और कुएँवाली बात अँचकर फीकी रही।" . "अम्मा, बात यह, तुम्हारी कनक अब तुम्हारी नहीं रही । उसके साने के हार में ईश्वर ने एक नीलम जड़ दिया है।" सर्वेश्वरी ने तअज्जुब की निगाह से कन्या को देखा। कुछ-कुछ उसका मतलब वह समम गई। पर उसने कन्या से पूछा-"तुम्हारे कहने का क्या मतलब कनक ने हाथ की एक चूड़ी, कलाई उठाकर, दिखाई। सर्वेश्वरी हँसने लगी। "तमाशा कर रही है ? यह कौन-सा खेल ?" । "नहीं अम्मा।" कनक गंभीर हो गई, चेहरे पर एक प्रकार स्थिर प्रौढ़ता मलकने लगी-"मैं ठीक कहती हूँ, मैं व्याही हुई हूँ, अब मै महफिल में गाना नहीं गाऊँगी। अगर कहींगाऊँगी भी, तो खूब सोचसममकर, जिससे मुझे संतोष रहे।" सर्वेश्वरी एक दृष्टि से कनक को देखती रही। "यह विवाह कब हुआ, और किससे हुआ ? किया किसने ?” "यह विवाह आपने किया, ईश्वर की इच्छा से, कोहनूर स्टेज पर, कल, हुआ, दुष्यंत का पार्ट करनेवाले राजकुमार के साथ, शकुंतला सजी हुई तुम्हारी कनक का । ये चूड़ियाँ ( एक-एक दोनो हाथों मे; इस प्रमाण की रक्षा के लिये मैंने पहन ली । और देखो" कनक ने बारा-सी सेंदुर की एक बिंदी सर पर लगा ली थी, "अम्मा, यह एक रहस्य हो गया। राजकुमार को." ___माता ने बीच ही में हँसकर कहा-'सुहागिनें अपने पति का नाम नहीं लिया करतीं।" ____ "पर मैं लिया करूंगी। मैं कुछ घूघट काढ्नेवाली सुहागिन तो नहीं कुछ पैदायशी स्वतंत्र हक मैं अपने साथ लगी। नहीं है