पृष्ठ:अप्सरा.djvu/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४२
अप्सरा

____ जैसे किसा ने कनक का कलेजा मल दिया हा'खालवा दीजिए" आह ! कितना दुराव! आँखें छलछला आई। राजकुमार आँखें मूंदे पड़ा था । सँभलकर कनक ने कहा, पंखे की हवा गर्म होगी। वह उसी तरह पंखा झलती रही। हाथ थोड़ी ही देर में दुखने लगे, कलाइयाँ भर आई, पर वह भलतीरही । उत्तर में राजकुमार ने कुछ भी न कहा । उसे नींद लग रही थी। धीरे-धीरे सो गया। राजकुमार के स्नान आदि का कुल प्रबंध कनक ने उसके जागने से पहले ही नौकरों से करा रक्खा था। राजकुमार के सोते समय सर्वेश्वरी कन्या के कमरे में एक बार गई थी, और उसे पंखा मलते हुए देख हँसकर चली आई थी । कनक माता को देखकर उठी नहीं, लज्जा से आँखें मुका, उसी तरह बैठी हुई पंखा झलती रही। . दो घंटे के बाद राजकुमार की आँखें खुली। देखा, कनक पंखा मल रही थी। बड़ा संकोच हुआ । उससे सेवा लेने के कारण लन्ना भी हुई। उसने कनक की कलाई पकड़ ली। कहा, बस आपको बड़ा कष्ट हुआ। फिर एक तीर कनक के हृदय के लक्ष्य को पार कर गया । चोट खा, कॉपकर सँभल गई। कहा-"आप नहाइएगा नहीं ?" "हॉ, स्नान तो जरूर करूँगा, पर धोती ?" कनक हँसने लगी। "मेरी धोती पहन लीजिएगा।" "मुझे इसके लिये लज्जा नहीं।" "तो ठीक है, थोड़ी देर में आपकी धोती सूख जायगी।" कनक के यहाँ मर्दानी धोतियाँ भी थीं। पर स्वामाविक हास्य-प्रियता के कारण नहाने के पश्चात् राजकुमार को उसने अपनी ही एक धुली हुई साड़ी,दी। राजकुमार ने भी अम्लान, अविचल भाव से वह साड़ी मदों की तरह पहन ली। नौकर मुस्किराता हुआ उसे कनक के कमरे में ले गया।