पृष्ठ:अप्सरा.djvu/६०

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अारा "क्या हुआ ?" "३५६-१३० से हम लोग जीते थे।" "बड़ा डिफरेंस रहा।" "किसी ने सेंचुरी भी की थी ?" "हाँ, इसी से बहुत ज्यादा फर्क आ गया था। हमारे प्रो० बनर्जी बोलिं भी बहुत अच्छी करते थे।" "सेंचुरी किसने की ?" राजकुमार कुछ देर चुप रहा। धीरे साधारण गले से कहा, मैंने । गाड़ी अब प्रिंस-ऑफ-वेल्स घाट के सामने थी। कनक ने कहा-"इंडेन गार्डेन लौट चलो। ड्राइवर ने मोटर घुमा ली। राजकुमार किले के बेतार-के-तारवाले ऊँचे खंभों को देख रहा था। कनक की तरफ फिरकर कहा, इसकी कल्पना पहले हमारे जगदीशचंद्र वसु के मस्तिष्क में आई थी। मोटर बढ़ाकर गेट के पास ड्राइवर ने राक दी। राजकुमार उतरकर कलकत्ता-ग्राउंड का हल्ला सुनने लगा। ____ कनक ने कहा-"क्या आज कोई विशेष खेल था ?” ____ "मालूम नहीं, आज मोहनबगान-कलकत्ता, लीग में रहे होंगे; शायद मोहनबगान ने गोल किया। जीतने पर अँगरेज़ इतना हल्ला नहीं करते। दोनो धीरे-धीरे सामने बढ़ने लगे । मैदान बीच से पार करने लगे। किनारे की कुर्सियों पर बहुत-से लोग बैठे थे । कोई-कोई टहल रहे थे। एक तरफ़ पश्चिम की ओर योरपियन, उनकी महिलाएं और बालक थे, और पूर्व की कतार में बंगाली, हिंदोस्तानी, गुजराती, मराठी, मद्रासी, पंजाबी, मारवाड़ी, सिंधी आदि मुक्त कंठ से अपनी- अपनी मातृ-भाषा का महत्व प्रकट कर रहे थे। और. इन सब जातियों की दृष्टि के आकर्षण का मुख्य केंद्र उस समय कनक हो रही थी । श्रुत. अशुत, सुट, अफुट. अनेक प्रकार की. समीचीन