अप्सरा "आप जल्द जाइए, मैं खा लूगा, वहीं टेबिल पर रखवा दीजिए।" यवती चली गई। महरी ने वहाँ चंदन की टेबिल पर तश्तरी रख दी। ढक दिया । लोटा ढक्कनदार जल-मरा और ग्लास रख दिया। - शीघ्र ही दुबारा कुल आलमारियों की जाँच कर ऊपर चला गया। दो-एक घरेलू पत्र ही मिले। "तुमसे एक बात कहता हूँ।" "भैयाजी कब तक लखनऊ रहेंगे ?" "कुछ कह नहीं गए। "शायद जब तक चंदन का एक फ़ैसला न हो जाय, तब तक "संभव है।" "आप एक काम करें।" "क्या "चलिए, आपको आपके मायके छोड़ दूं।" . युवती सोचती रही। "सोचने का समय नहीं जल्द हाँ-ना कीजिए।" "चलो।" “यहाँ सिपाही लोग रहेंगे। आवश्यक चीजें और अपने गहने और नकद रुपए जो कुछ हों, ले लीजिए। शीघ्र सब ठीक कर लीजिए, जिससे चार बजे से पहले हम लोग यहाँ से निकल जायें।" "मुझे बड़ा डर लग रहा है, रज्जू बाबू !" "मैं हूँ अभी, अभी कोई इंसान आपका क्या बिगाड़ लेगा? मैं लौटकर आपको लैस देख। राजकुमार गैरेज से मोटर ले आया । किताबों का लंबा-सा बधा हुआ बंडल उठाकर सीट के बीच में रख बैठ गया। फिर बलवत्ते की तरफ उड़ चला। अपनी कोठी पहुँचा। जिस तरह फाटक का छोटा दरवाजा वह