पृष्ठ:अप्सरा.djvu/८३

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७६ अप्सरा "यह बात है, अपने को सँभाल लो, तमाम उन खराब कर देने से फायदा क्या ?" हृदय की खान में बारूद का धड़ाका हुआ। करुण अधखुली चितवन से कनक राजकुमार का चित्र देख रही थी, जो किसी तरह भी हृदय के पट से नहीं मिट रहा था। कह रही थी-सुनते हो?-पुरुष, यह सब मुझे किसकी गलती से सुनना पड़ रहा है, चुपचाप, दर्द को थामकर ?" "तो तै रहा" "तार कर दिया जाय ?" . "कर दीजिए। "तुम खुद लिखो, अपने नाम से। कनक झपटकर उठी। अपने पढ़नेवाले कमरे से एक तार लिख लाई-"राजा साहब, आपका तार मिला | मैं अपनी माता के साथ आपकी महफिल करने आ रही हूँ।" . सर्वेश्वरी तार सुनकर बहुत प्रसन्न हुई। ___ "सुनो।" कैथरिन कनक को साथ अलग बुला ले गई। उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। कनक के स्वभाव का ऐसा चित्र उसने आज ही देखा था। वह उसे ऊपर उसके कमरे में बुला ले गई। (वहाँ अँगरेजी में कहा) "तुम्हारा जाना अच्छा नहीं।" “धुरा क्या है ? मैं इसीलिये पैदा हुई हूँ।" ... "राजा लोग, मैंने सुना है, बहुत बुरी तरह पेश आते हैं।" "हम लोग रुपए पाने पर सब तरह का अपमान सह लेती हैं।" "तुम्हारा स्वभाव पहले ऐसा नहीं था। "पहले बयाना भी नहीं आता था।" "तुम योरप चलो, यहाँ के आदमी क्या तुम्हारी कद्र करेंगे ? मैं वहाँ तुम्हें किसी लॉड से मिला दूंगी.