पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१०५

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द्वितीय कोशस्थान : इन्द्रिय 1

. ! ७ ए-ची. कायिकी असाता (उपघातिका) वेदना दुःखेन्द्रिय है।' 'कायिकी' अर्थात् काय में होनेवाली, जो चक्षुर्विज्ञानादि पाँच विज्ञानकाय से संप्रयुक्त है । 'असाता' अर्थात् उपधातिका । जिस वेदना का पंचेन्द्रिय आश्रय है और जो उपघातिका है उसे दुःखेन्द्रिय कहते हैं। [११४) ७ वी-सी. जो साता (अनुमाहिका) है वह सुखेन्द्रिय है ।' 'साता' अर्थात् अनुग्राहिका, जो अनुग्रह, उपकार करती है । साता कायिकी वेदना सुखेन्द्रिय कहलाती है । ७ सी-डी. तृतीय ध्यान में चैतसी साता वेदना भी सुखेन्द्रिय है। चैतसी वेदना मनोविज्ञानसंप्रयुक्त वेदना तृतीय ध्यान की चैतसी साता वेदना भी सुखेन्द्रिय कहलाती है। अन्यत्र यह नाम कायिकी साता वेदना के लिए सुरक्षित है। किन्तु तृतीय ध्यान में कायिकी वेदना नहीं होती क्योंकि वहां पंच विज्ञानकाय का अभाव है । अतः जब हम तृतीय ध्यान के सुख का उल्लेख करते हैं तब हमारा अभिप्राय चैतसी साता वेदना से होता है (८.९ देखिए)। अन्यत्र सा सौमनस्यम् असाता चैतसी पुनः । दौर्मनस्यम् उपेक्षा तु मध्योभय्यविकल्पनात् ॥८॥ ८ ए. अन्यत्र यह सौमनस्य है । अन्यत्र अर्थात् तृतीय ध्यान से अधर भूमियों में अर्थात् कामघातु और प्रथम दो ध्यानों में चैतसी साता वेदना सौमनस्य या सीमनत्येन्द्रिय है। तृतीय ध्यान से ऊर्ध्व चैतसी साता वेदना का अभाव है। तृतीय ध्यान में चैतसी साता वेदना क्षेम और शान्त है क्योंकि इस ध्यान में योगी प्रीति से वीतराग होता है (प्रीतिवीतरागत्वात्) [व्या १००.२६] । अतः यह सुखेन्द्रिय है, सौमनस्ये- न्द्रिय नहीं है । १ [दुःखेन्द्रियम्] असाता या कायिकी वेदना । [च्या० १००.११] विभंग, पृ. १२३ के लक्षणों से तुलना कीजिए। २ चक्षुरादि ५ विज्ञानेन्द्रिय काय हैं : वास्तव में यह इन्द्रियाँ परमाणुसंचयात्मक है, परमाणु के काय है।--'काय' में जो वेदना उत्पन्न होती है या जो आश्रयभूत काय-सहगत है वह कायिकी कहलाती है (कायप्रथन्धि पर २.२५ देखिए )। सुखम् । साता (व्या० १००.१७) २ ध्याने तृतीये तु चैतसी सा सुन्द्रियम् ॥ (व्या० १००.२२) अन्यत्र सा सौमनस्यम् सुख सात है क्योंकि यह अनुग्रह करता है (सा सत्वाद्धि सुखमुच्यते); सौमनस्य में प्रीति भी है. इस प्रश्न का पुनः विचार ८.९ वी में किया गया है। १ 3 ४