पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१०६

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९२ अभिधर्मकोश [११५] तृतीय ध्यान से अधर चैतसी साता वेदना औदारिक (रूक्ष ?) और क्षुब्ध होती है क्योंकि तृतीय ध्यान से अधर भूमियों में योगी का प्रीति से विराग नहीं होता : अतः यह सौमनस्य है ।---प्रीति जिसका स्वभाव संप्रहर्ष का है सौमनस्य से अन्य नहीं है । ८ वी सी. चैतसी असाता वेदना दौर्मनस्य है।' मनोविज्ञान से संप्रयुक्त जो वेदना उपधातिका है वह दौमनस्य या दौर्मनस्येन्द्रिय है । ८ सी-डी. कायिकी और चैतसिको मध्या वेदना उपेक्षा है क्योंकि यहां विकल्पन नहीं है। मध्या वेदना जो न साता है, न असाता, अदुःखासुखा वेदना है । यह उपेक्षा वेदना या उपेक्षेन्द्रिय कहलाता है। क्या यह वेदना कायिकी है, क्या यह चैतसिकी है ? चाहे यह कायिकी हो या चैतसिकी, मध्या वेदना उपेक्षा वेदना है । अतः उपेक्षा वेदना द्विविध है किंतु यह एक ही इन्द्रिय है क्योंकि यहां कोई विकल्पन नहीं है। १. कोई विकल्पन नहीं है। कायिकी और चैतसिकी उपेक्षा-वेदना भी विकल्प ( =अभि- निरूपणाविकल्प, १.३३) से रहित है। प्रायेण साता और असाता चैतसिकी वेदना प्रिय- अप्रियादि विकल्प से उत्पन्न होती है। इसके विपरीत कायिकी वेदना की उत्पत्ति चित्त की अवस्था से स्वतन्त्र विषयवश (विषयवशात्) होती है : अर्हत् राग-द्वेष से विनिर्मुक्त हैं। उन्होंने प्रिय-अप्रिय विकल्प का प्रहाण किया है । तथापि उनमें कायिक सुख-दुःख का उत्पाद होता है । [११६] अतः कायिक-चैतसिक और सुख-दुःख का इन्द्रियत्वेन भेद करना चाहिए। किन्तु उपेक्षा वेदना कायिकी हो या चैतसिकी, कायिकी वेदना के तुल्य स्वरसेन (अनभि- संस्कारेण) ° उत्पन्न होती है। इसकी उत्पत्ति उस पुद्गल में होती है जो विकल्प से रहित है (अविकल्पयतः, अनभिनिरूपयतः) : अतः कायिकी और चैतसिको इन दो उपक्षा-वेदनाओं के लिए एक ही इन्द्रिय मानते हैं। २. कोई विकल्प नहीं है। कायिकी और चैतसिकी, साता-असाता, वेदना अपनी अपनी विशेष वृत्ति के अनुसार अनुग्रह करती है या उपघात करती है । इनका अनुभव एक रूप से नहीं होता। उपेक्षा वेदना न अनुग्रह करती है, न उपधात । उपेक्षा में ऐसा विकल्प नहीं है; अतः कायिकी और चैतसिकी के अनुभव में अभेद है । दृग्भावनाशैक्षपये नव श्रीण्यमलं अयम् । रूपोणि जीवितं दुःखे सालबाणि द्विधा नव ॥९॥ १ असाता चैतसी पुनः । दोर्मनस्यम् व्या० १००.३१] ५ उपेक्षा तु मध्योभव्यविकल्पनात् ॥ व्या० १००.३३] समाधिज और विपाकज (विपाकफल) (२.५७) चैतसो साता वेदना का परिधान करना चाहिए। यह फेवल विपापफल और नेप्यन्दिको (२.५७ सो) है। ५