पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१११

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द्वितीय कोशस्थान : इन्द्रिय का अन्त होने जा रहा है और वह देखता है कि दूसरे इन दो उद्देश्यों को पूरा करने में असमर्थ हैं। [१२२] २. किस हेतु से अर्हत आयुःसंस्कार का उत्सर्ग करता है ? दो हेतुओं से : वह देखता है कि उसके इस लोक में अवस्थान करने से परहित साधित नहीं होता है और वह देखता है कि उसका आत्मभाव रोगादि से अभिभूत है।' जैसा गाथा में कहा है : ब्रह्मचर्य का भली प्रकार आचरण हुआ है, मार्ग सुभावित हुआ है : आयु के क्षय पर वह संतुष्ट है जैसे रोग के अपगम पर तुष्ट होते हैं । ३. किसका आयुःसंस्कार कहां अधिष्ठित या उत्सृष्ट होता है ? तीन द्वीपों में (३.५३), स्त्री-पुरुष, असमयविमुक्त अहँत् जो प्रान्तकोटिक (६.५६, ६४) ध्यानलाभी है : वास्तव में उसका समाधिवशित्व होता है और उसकी संतति क्लेशों से उप- स्तब्ध नहीं होती। ४. सूत्र के अनुसार जीवित संस्कारों को अधिष्ठित करने के अनन्तर भगवत् ने आयुः संस्कारों का उत्सर्ग किया । प्रश्न है कि १. जीवित के संस्कार और आयु के संस्कारों में क्या भेद है; २. बहुवचन का क्या अर्थ है : संस्काराः ?५ [१२३] प्रथम प्रश्न के संबंध में : ए. कुछ आचार्यों के अनुसार कोई भेद नहीं है । वास्तव में मूलशास्त्र (ज्ञानप्रस्थान, १४.१९, प्रकरणपाद, फोलिओ १४ बी ६) कहता है कि "जीवितेन्द्रिय क्या है ? --यह त्रैधातुक आयु है ।" १ रोगाभिभूत [ग्या० १०५.५ में रोगादिभूतम् तथा टिप्पणी में रोगाभिभूतम् पाठ है ] -इससे रोग, गण्ड, शल्य समझना चाहिए जो त्रिदुःखता है, ६.३. मिलिन्द, ४४ में यधपि अर्हत् का शरीर रोग से अभिभूत है तथापि वह निर्वाण में प्रवेश नहीं करता : नाभिनन्दामि जीवितम् . २ ब्रह्मचर्यम् सुचरितम् मार्गश्चापि सुभावितः । आयुःक्षये तुष्टो भोति रोगस्यापगमे यथा ।। 3 अक्षरार्थ : "उसको सन्तति क्लेशों से अनुपस्तब्ध है (लेशैरनुपस्तब्धा सन्ततिः): यह फ्लेश है जो सन्तति का धारण और अवस्थान करते हैं। -समयविमुक्त अर्हत क्लेश से विनि- र्मुक्त होता है किन्तु उसका समाधिवशित्व नहीं होता; दृष्टिप्राप्त में यद्यपि समाधिवशित्व होता है तथापि उसको संतति क्लेशों से अनुपस्तब्ध नहीं होती (६.५६) । [व्या० १०५.९] ४ जीवितसंस्कारान् अधिष्ठाय आयुःसंस्कारान् उत्सृष्टवान् । दिव्यावदान, २०३ से तुलना कीजिए : अथ भगवांस्तद्रूपं समाधि समापन्नो यथा समाहिते चित्ते जीवितसंस्कारान् अधिष्ठाय आयुःसंस्कारान् उत्त्रष्टुं आरब्धः- महावस्तु, १.१२५, १९ में एकवचन है। दोघ, २.९९ यन् नूनाहें इमं आवाधं विरियन पटिप्पणामेत्वा जीवितसंखारं अघिढ़ाय विहरेय्यं; २.१०६...... .आयुसंखारमोस्सजि । (संयुत्त, ५.१५२, अंगुत्तर, ४. ३६१, उदान, ६.१ से तुलना कीजिए)-बफ़, लोटस, २९१. अन्य स्थलों में पालि में बहुवचन है, मज्झिम, १.२९५ (अझे आयुसंखारा असे वेद- निया धम्मा), जातक, ४.२१५ (आयुसंखारा खोयन्ति) १ विभाषा, १२६, २ इस विषय में १४ मत गिनाती है। ७