पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/११२

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९८ अभिधर्मको बी. अन्य आचार्यों के अनुसार 'आयुः संस्कार का अर्थ वह जीवन है जो पूर्व जन्म के कर्म का फल है; जीवित संस्कार का अर्थ वह जीवन है जो इस जन्म के कर्म का फल है (संघ को दान आदि पृ० १२०) । सी. अन्य आचार्यों के अनुसार जिससे निकायसभाग की स्थिति होती है वह आयु:- संस्कार है; जिससे कुछ काल के लिए जीवन का और अवस्थान होता है वह जीवित संस्कार है। दूसरे प्रश्न के संबंध में ए. सूत्र में बहुवचन का प्रयोग है क्योंकि आर्य बहु संस्कारों का अधिष्ठान और उत्सर्जन करता है। एक क्षण के अधिष्ठान या उत्सर्जन से प्रयोजन सिद्ध नहीं होताः केवल क्षणप्रवाह से आर्य परकार्य का अभिनिष्पादन कर सकता है। दूसरी ओर एक क्षण पौड़ाकर नहीं होता। बी. एक दूसरे मत के अनुसार बहुवचन का प्रयोग यह दिखाने के लिए है कि जीवित, आयु द्रव्य नहीं है जो कालान्तर में स्थावर हो । सी. एक दूसरे मत के अनुसार बहुवचन का प्रयोग सर्वास्तिवादियों के बाद को सदोष बताने के लिए है जिसके अनुसार जीवित, आयु एक द्रव्य, एक धर्म है। जीवित,आयु की यह आख्याएं बहुसंस्कारों को प्रशस्त करती हैं जो सहवर्तमान होते हैं और जो धातु के अनुसार चतुः स्कन्ध- स्वभाव या पंचस्कन्ध-स्वभाव होते हैं। अन्यथा सूत्र में संस्कार-ग्रहण न होता; सूत्र कहता कि "भगवत् ने जीवितों का अधिष्ठान किया, आय का उत्सर्ग किया। ५. भगवत् उसका उत्सर्ग क्यों करते हैं, उसका अधिष्ठान क्यों करते हैं ? {१२४] मरणवशित्व के ज्ञापनार्थ वह उत्सर्ग करते हैं; जीवितवशित्व के ज्ञापनार्थ वह अधिष्ठान करते हैं ---वह तीन मास के लिए (त्रैमास्य) न अधिक, न कम, अधिष्ठान करते हैं। क्योंकि तीन मास के ऊर्ध्व विनेय कार्य का अभाव होता है और बुद्धकार्य का सुभद्रावसान होता है। क्योंकि तीन मास से कम में कार्य का संपादन नहीं होगा।' अथवा प्रतिज्ञात के संपादन के लिए (प्रतिज्ञातसंपादनार्थम्) [व्या १०५. २९] । "जिस भिक्षु ने चार ऋद्धिपादों (६.६९ बी) को सुभावित किया है वह यदि चाहे तो एक कल्प या एक कल्प से अधिक अवस्थान करेगा ।"3 २विमापा का ११ वाँ मत । विभापा का ६ठा मत । जापानी सम्पादक के अनुसार साम्मितीयों का बाद । ५सौत्रान्तिक मत। जापानो संपादक के अनुसार यह आचार्य का मत है। २विभाया, १२६, ६, ६ मतों में से पाँचवाँ। 3 फल्पं वा...कल्पावशेष वा अर्थात् परमार्थ के स्पष्ट भाषान्तर के अनुसार 'एक कल्य या एक कल्प से अधिक' । साधारणतः यह अनुवाद होता है : 'एक कल्प या कल्प का अवशिष्ट भाग विडिश, राइस विड्स, अटो मान्के)-दीघ, २.१०३, ११५६३.७७ दिथ्य, २०१-यावत्यु, ११.५; सिद्धि, ८०३.