पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/११६

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१०२ अभिधर्मकोश २. प्रथम आठ इन्द्रिय (चक्षुरादि, जीवितेन्द्रिय, पुरुषेन्द्रिय-स्त्रीन्द्रिय) अविपाक है क्योंकि यह अव्याकृत हैं; अन्तिम तीन (अनाशरतमाशास्यामीन्द्रिय आदि) अविपाक हैं क्योंकि वह अनासव है (४.६०)। ३. शेष १० इन्द्रियों के सम्बन्ध में : मन-इन्द्रिय, सुख, सौमनस्य और उपेक्षावेदना सविपाक हैं जब यह अकुशल या कुशल सासव है। यह अविपाक हैं जब अव्याकृत या अनास्रव हैं। [१२९] दुःखावेदना सविपाक है जब यह कुशल या अकुशल है; अविपाक है जब यह अव्याकृत है। श्रद्धादि पंचक सविपाक है जब यह सास्रव हैं, अविपाक हैं जब अनास्त्रव हैं। २२ इन्द्रियों में कितने कुशल, कितने अकुशल, कितने अव्याकृत हैं ? ११सी-डी. आठ कुशल हैं; दौर्मनस्य द्विविध है : मन-इन्द्रिय और दीर्मनस्य को वर्जित कर अन्य वेदनाएं तीन प्रकार की हैं; अन्य एक प्रकार की हैं।' ८ अर्थात् श्रद्धादि और अनाजातमाज्ञास्यामि आदि आठ केवल कुशल हैं। यद्यपि इनको सूची के अन्त में जाना चाहिए तथापि यह पूर्व उक्त हैं क्योंकि पूर्व कारिका के यह अन्त्य हैं । दौ- मनस्य कुशल-अकुशल (२.२८) है। मन-इन्द्रिय और चार वेदना कुशल, अकुशल, अव्याकृत हैं। चक्षुरादि, जीवितेन्द्रिय, पुरुषेन्द्रिय-स्त्रीन्द्रिय अव्याकृत हैं। २२ इन्द्रियों में से कौन-कौन किस किस धातु के हैं ? कामाप्तममलं हित्वा रूपाप्तं स्त्रीयुमिन्द्रिये । दुःखे च हित्वाऽरूप्याप्तं सुखे चापोह्य रूपि च ॥१२॥ १२. कामधातु में अमल इन्द्रियों का अभाव है; रूपधातु में इनके अतिरिक्त स्त्रीन्द्रिय- पुरुषेन्द्रिय और दो दुःखावेदना (दुःख-दौर्मनस्य) का भी अभाव है ; आरूप्यधातु में इनके अतिरिक्त रूपी इन्द्रिय और दो सुखा (सुख-सौमनस्य) वेदना का भी अभाव है। [१३०] १. अन्तिम तीन अमल अर्थात् अनास्त्रच इन्द्रियों को छोड़कर शेष सब इन्द्रिय कामाप्त है । यह धातुओं से अप्रतिसंयुक्त हैं, अधातुपतित हैं । अतः अन्तिम तीन को छोड़कर १९ इन्द्रिय कामावचर हैं। १ कुशलमष्टकं द्विधा । दोर्मनस्यं मन्दोऽन्या च वितिस्त्रधायद् एकथा ॥ व्या० १०८.२३ में कुशलमष्टकं के स्थान में अष्टकं कुशलं तथा त्रैया के स्थान में त्रेधा पाठ है। शुभान् चाड : अन्तिम आठ केवल कुशल हैं; दौमनस्य कुशल-अकुदाल है। मन और अन्य बेदना तीन प्रकार की है। प्रथम आठ केवल अव्याकृत हैं। विभंग, पृ. १२५ से तुलना कीजिए। फामाप्तममलं हित्वा रूपाप्त स्त्रीपमिन्द्रिये। दुःखे च हित्या हप्याप्तम् सूखे चापोह रूमि च ॥ या० १०९.९, १२, १५, ३३] B