पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/११८

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अभिधर्मकोश केवल 'भावनाहेय' हैं क्योंकि (१) प्रथम आठ क्लिष्ट नहीं हैं; (२) नयाँ अषष्ठज (१.४०) है; (३) सब सर्वत्र सास्रव हैं। ४. श्रद्धादि पंचेन्द्रिय (१) क्लिष्ट नहीं है, अतः वह दर्शनहेय नहीं हैं; (२) अनास्तव हो सकते हैं, अतः 'अहेय' हो सकते हैं। ५. अन्तिम तीन (अनाज्ञातमाज्ञास्यामि आदि) 'अहेय' हैं (१) क्योंकि वह अनास्रव हैं, (२) क्योंकि आदीनव (अपक्षाल ? ) से वियुक्त धर्म प्रहातव्य नहीं हैं। कामेष्वादौ विपाको द्वे लभ्येते नोपपादुकैः। तैः षड् वा सप्त वाष्टौ वा षड् रूपेष्वेकमुत्तरे ॥१४॥ विविध धातुओं के सत्व, आदि में, कितने विपाक स्वभाव इन्द्रियों का लाभ करते हैं ? १४. काम में उपपादुकों को छोड़कर अन्य सत्त्व आदि में दो विपाकात्मक [१३२] इन्द्रियों का लाभ करते हैं : उपपादुक ६, ७ या ८ इन्द्रियों से समन्वागत होते है; रूप में ६ से; इसके उत्तर एक से । कामधातु 'काम' कहलाता है क्योंकि इस धातु में कामगुणों का (१.२२ बी- डी. पृ० ४३) प्रधानत्व होता है । रूपधातु 'रूप' कहलाता है क्योंकि वहां रूप का प्रधानत्व है ।२ सूत्र इस भाषा का प्रयोग करता है : "यह शांत विमोक्ष रूपों का अतिक्रमण कर....... १. कामधातु में जरायुज, अण्डज और संस्वेदज (३.८) सत्व, आदि में, प्रतिसन्धि-काल में, कायेन्द्रिय और जीवितेन्द्रिय इन दो विपाकात्मक इन्द्रियों का लाभ करते हैं। क्रमशः अन्य इन्द्रियों का उनमें प्रादुर्भाव होता है । मन-इन्द्रिय और उपेक्षेन्द्रिय (३.४२) को क्यों नहीं गिनाते ? क्योंकि प्रतिसन्धि-काल में दोनों अवश्य क्लिष्ट होते हैं; अतः वह विपाक नहीं हैं (३. ३८) । २. उपपादुक सत्व (३.९) ६, ७ या ८ इन्द्रिय से समन्वागत होते हैं। यदि अव्यंजन यथा प्राथमकल्पिक सत्व (३.९८) होते हैं तो ६ से समन्वागत होते हैं : ५ विज्ञानेन्द्रिय और जीधि- तेन्द्रिय। जो एक व्यंजन होते हैं वह सात से समन्वागत होते हैं। उभय-व्यंजन ८ से समन्वागत होते हैं । . १ २ कामेण्याची विपाको द्वे लभ्यते नोपपादुकैः । तः षड् वा [सप्त वाष्टी वा पड़ रूपेषव् [एकमुत्तरम् ॥ [च्या० ११०.१७, २४, २८ में विपाको के स्थान में विपाको पाठ है। कयावत्यु, १४.२, अभिधम्मसंगह (काम्पेण्डियम, पृ. १६५) से तुलना कीजिए । इसका यह अर्थ है: "क्योंकि रूप वहां अच्छ ( = भास्वर) होते हैं" अथवा "क्योंकि रूप धातु फामगुण-प्रधान नहीं है, रूपमात्र प्रधान है" । १.२२ ए-ची, ४ में भिन्न वाद है। 3 येऽपि ते शान्ता चिमोक्षा अतिक्रम्य रूपाण्यारूप्यास्तेऽप्यनित्या अध्रुवा अनाश्वासिका विपरि- णामधर्माणः......संयुत्त, -२.१२३ से तुलना कीजिए। ८, १४०, मरिझम, १, ४७२ देखिए।