पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अभिधर्मकोश आप कैसे जानते हैं कि एक संघात में महाभूत होते है जिनके सद्भाव की उपलब्धि नहीं होती है ? सव महाभूतों का अस्तित्व उनके कर्मविशेष से अर्थात् धृति, संग्रह, पक्ति, ब्यूहन से (१. १२ सी) गमित होता है । एक दूसरे मत के अनुसार अर्थात् भदन्त श्रीलाभ के अनुसार संघातों में चार महाभूत होते है क्योंकि प्रत्यय-लाभ होने से कठिनादि का द्रवणादिभाव होता है। तेजोधातु का अस्तित्व जल में है क्योंकि जल में शैत्य का अतिशय है। यह तेज के अन्यतर-तमोत्पत्ति से होता है । किन्तु हम कहेंगे कि शैत्य का पटु-पदुतरभाव यह सिद्ध नहीं करता कि शैत्य द्रव्य का उसके विपर्यय औषण्य' से मिश्रीभाव (व्यतिभेद) होता है । यथा शब्द का द्रव्यान्तर से व्यतिभेद नहीं होता और अतिशय होता है; यथा वेदना का किसी द्रव्यान्तर से व्यतिभेद नहीं होता और तारतम्य से अतिशय होता है । (१४७) एक दूसरे मत के अनुसार अर्थात् सौत्रान्तिकों के अनुसार संघात में जिन महाभूतों की उपलब्धि नहीं होती वह वीजतः (शक्तितः, सामर्थ्यतः) वहां होते हैं, कार्यतः, स्वरूपतः नहीं होते । इस प्रकार भगवत्-वचन है (संयुक्तागम, १८, १०) : “इस दारु-स्कन्ध में विविध धातु हैं ।"१ भगवत् का यह अभिप्राय है कि इस दारु में अनेक धातुओं के बीज, अनेक . धातुओं की शक्तियां हैं क्योंकि दारु में सुवर्ण-रूप्यादि के स्वरूपतः होने का अवकाश नहीं है । सौत्रान्तिक एक दूसरा आक्षेप करते हैं : वायु में वर्ण के सद्भाव को कैसे व्यवस्थित करते है ?? वैभाषिक उत्तर देते हैं : यह अर्थ श्रद्धनीय है, अनुमान-साध्य (अनुमेय) नहीं है । अथवा वायु वर्णवान् है क्योंकि वायु का गन्धवान् द्रव्य से संसर्ग होने से गन्ध का ग्रहण होता है किन्तु यह गन्ध वर्ण के साथ व्यभिचार नहीं करता 13 ६. हम जानते हैं कि रूपधातु में गन्ध और रस का अभाव है (१.३०)। अतः वहां के परमाणुओं की संख्या को न्यून करना चाहिए। वहां के परमाणु पट्-सप्त-अप्टद्रव्यक होंगे और अन्धातु दारु में होता है : यह अधातु है जो उसका संग्रह करता है और विशीर्ण होने से उसे रोकता है। यह तेजोधातु है जिसके कारण काष्ठ में पक्ति होती है और उसका पूति: भाव होता है । वायुधातु में काष्ठ का व्यूहन, प्रसर्पण होता है ।--पृथिवीधातु जल में है क्योंकि जाल में नौका प्रभृति को वृति होती है ।--अपर, पृ. २२, व्याख्या, पृ. ३४ देखिए । 3 कठिन लोहे का अग्नि से द्रवण होता है। अतः इसमें अब्धातु का अस्तित्व है । द्रव जल शैत्य से कठिन होता है, अतः इसमें पृथिवीधातु का अस्तित्व है । कठिन-संघर्ष से औरण्य को उप- लब्धि होती है, इससे जाना जाता है कि यहाँ तेजोधातु का अस्तित्व है इत्यादि। अप्सु शैत्यातिशयादोषण्यं गम्यते । व्या० १२४.२८] सन्त्यस्मिन् दारुस्कन्धे विविधा धातवः व्या० १२५.९]-धातु के अर्थ के लिए १.२० देसिए। २ इस लक्षण से सद्भाव होता है : परमाणु अण्टद्रव्यक है। ३ वर्णवान् वायुर्गन्धवत्त्वान्जातिपुष्पवत्--[व्या० १२५.२०]--१.१३ सी-डी भी देखिए । ४